त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य

नमस्कार दोस्तो, आप सबका इस लेख में स्वागत है।

आज की इस लेख में हम त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य क्या यह देखने वाले हैं।

चलिए  त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रहस्यों को जानने की, कोशिश करते है।

प्राचीन मंदिर का रहस्य महर्षि गौतम के साथ जुड़ा हुआ है। पुराणों की लेख अनुसार कहा जाता है कि, महर्षि गौतम की मठ में ब्राह्मणों तथा उनकी पत्नियों का निवास था। ब्राह्मण की पत्नियां महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या से किसी कारणवश नाराज थी। इस निराशा के कारण उन्होंने अपने पतियों से अनुरोध किया कि वे महर्षि गौतम को अपमान करें तथा इस आश्रम से निकाले। इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए सभी ब्राह्मणों ने भगवान श्री गणेश जी की आराधना की। भगवान श्री गणेश जी ब्राह्मणों के द्वारा की गई श्रद्धा पूर्वक उपासना से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रगट हुए और उनसे अपनी इच्छा पूर्वक वर मांगने का प्रस्ताव किया।

भगवान श्री गणेश का वरदानः-

भगवान श्री गणेश जी की वर मांगने की बात सुनकर सभी ब्राह्मणों ने कहा कि,यदि वह उनकी उपासना या श्रद्धा पूर्वक आराधना से प्रसन्न है तो, वे उनकी महर्षि गौतम को अपमान करने की इच्छा पूर्ण करें तथा इस आश्रम से बाहर निकाल दीजिए। भगवान श्री गणेश जी ने यह इच्छा सुनकर उन्हें समझाने का अत्यंत प्रयास किया किंतु ब्राम्हण अपनी पत्नी के कथन अनुसार अपने इस विचार पर से ना हटने का दृढ़ निश्चय किये हुए थे। उनके इस विचार से पीछे ना हटने के कारण भगवान श्री गणेश जी को उनके द्वारा मांगी गई इच्छा की पूर्ति करनी पड़ी।


इस इच्छा की पूर्ति करने हेतु भगवान श्री गणेश जी ने दुर्बल गाय का रूप धारण किया तथा महर्षि गौतम जी के खेत में चरने लगे। जब गौतम ऋषि ने दुर्बल गाय को अपने खेत में चरते हुए देखा। तो वे क्रोध में आकर उन्होंने अपना तृण उठाया और उस गाय को भगाने के लिए जैसे ही, उन्होंने तृण से गाय को स्पर्श किया। गाय जमीन पर मूर्छित होकर गिर गयी। जिससे उसकी मृत्यु हो गई। जब यह दुर्घटना ब्राह्मणों को पता चला तो सभी ब्राह्मण गौतम ऋषि का अपमान करने लगे और उन्हें आश्रम छोड़कर जाने को कहा।




यह वाक्य सुनते ही महर्षि गौतम अत्यंत दुखी होकर ब्राह्मणों से अनुरोध करने लगे की है ब्राम्हण, मुझे इस गौ हत्या पाप से बचाइए मुझे इस पाप से मुक्ति के लिए मार्ग दिखाइए। सभी ब्राह्मणों ने विचार करके। महर्षि गौतम को पृथ्वी की तीन बार पूरी परिक्रमा करने को कहा तथा इस परिक्रमा को पूर्ण करने के पश्चात एक माह तक ब्रह्मागिरी पर्वत पर व्रत रख के 101 बार परिक्रमा करने के लिए कहा। इस विचार को सुनते ही महर्षि गौतम ने अपने पाप से मुत्तिफ़ पाने के लिए यह विधि को श्रद्धा पूर्वक पूर्ण किया।


भगवान शिव का वरदानः-

श्रद्धा पूर्वक विधि को पूर्ण करने के पश्चात भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गौतम ऋषि को दर्शन दिए। उनसे कहा कि वह अपनी इच्छा पूर्वक कोई वरदान मांग सकते हैं। ऋषि ने अपनी वॉइस इच्छा में गौ हत्या के पाप से मुत्तिफ़ पाने के लिए वरदान मांगा। यह वाक्य सुनते ही शिवजी ने बताया कि यह कोई पाप नहीं है, ब्राह्मणों के द्वारा मांगे गए वरदान को पूर्ण करने के लिए श्री गणेश जी ने यह किया था। जिसके लिए शिव जी कहते हैं, कि वह‌ ब्राह्मणों को दंड देना चाहते हैं। तो महर्षि गौतम ने भगवान शिव जी से अनुरोध किया कि वह ऐसा ना करें क्योंकि ब्राह्मणों के कारण ही मुझे आपके दर्शन प्राप्त हुए।


वहां उपस्थित ऋषि-मुनियों एवं देवताओं ने महर्षि गौतम का समर्थन किया। आदिशंकर से उस स्थान पर सदा के लिए विराजित होने की इच्छा प्रकट की। जिसके पश्चात यह स्थान त्रिदेव एवं शिवशंभू महादेव के 10 वें ज्योतिर्लिंग त्रंबकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है।

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