केदारनाथ के रहस्य
केदारनाथ मंदिर के रहस्य
केदारनाथ धाम एक ऐसा धाम है जिसके बारे मे हर कोई गहनता से जाना चाहता है| इसकी लोकप्रियता व प्रसिद्धी को देखकर हर किसी के मन मे यह प्रश्न उठता है, की आखिर केदारनाथ मंदिर से जुडी कुछ अनकही बाते क्या है? आखिर केदारनाथ मंदिर की ऐसी कौन सी बाते है, जो इसे इतना लोकप्रिय बनाती है|
इसीलिए आज हम केदारनाथ मंदिर से जुडे एक दोन नही बल की बहुत सारे रोचक तथ्य आपके साथ साजा करेंगे| जिने जानकर आप आश्चर्य चकित हो जायेंगे जानते है, केदारनाथ मंदिर से जुडे अनकहे पहलू के बारे मे..
1..केदारनाथ पर्वत केदार नामक शृंग पर स्थित है।
केदारनाथ हिमालय के केदार पर्वत पर अवस्थीत है। केदारनाथ धाम और मंदिर तीनो तरफ पहाडोसे घिरा है। एक तरफ हे करीब 22 हजार फूट ऊॅंचा केदारनाथ दुसरी तरफ हे 31 हजार फूट ऊॅंचा खर्च कुंड और तिसरी तरफ है 22 हजार 700 फूट ऊॅंचा भरत कुंड नाम का पहाड है।
2. केदारनाथ का सबसे बडा रोचक तथ्य व रहस्य यहा पर स्थित शिवलिंग है| या शिवलिंग त्रिकोण के आकार का एक बडा पत्थर है| जिसे भगवान शिव के बैल रुपी अवतार का पीठ वाला भाग माना जाता है| यह शिवलिंग मानवनिर्मित ना होकर प्राकृतिक है जो धरती मे से प्रकट हुआ था|
इस शिवलिंग के निर्माण के पीछे महाभारत के समयकाल की पांडव व भगवान शिव से जुडी कथा प्रचलित है| महाभारत युद्ध मे विजय पाने के बाद पांडवो को ऐसा लगा की उन्होने अपने भाईयों की हत्या की है, और अब उन्हे इस पाप का प्रायचित करना चाहिए। साथ हि पाप से मुक्त होने के उपाय सोचना चाहिए। इसलिये पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय पर पोहुचे।
लेकिन उनको भगवान शिवने दर्शन नही दिये और वो अंतर ध्यान होकर केदार मे चले गए। वही पांडवने भी हार नही मानी और वे भगवान शिव को खोजते हुए केदार तक पहुंचे। जब भगवान को यह सब ज्ञात हुआ तो, उन्होने बैल का रूप धारण कर लिया। और वे अन्य पशु के बीच चले गये, ताकी उनको कोई पहचान ना पाए। रूप बदलने के बाद भी पांडवोने भगवान शिव को पहचान गए। साथी भीम ने बुद्धी का प्रयोग कर अपना विशाल रूप धारण कर लिया, और अपने पैर दो पहाडो पर फैला दिया, यह देख अन्य जानवर भागने लगे। लेकिन भगवान शंकर रुपी बैल पैर के नीचे से जाने को तयार नही हुए। क्यूकी या भगवान का अपमान होता। यह देख भीम समज गये की यही भगवान शिव है। जो बेल के रूप मे है भीम बैल के पास गए तो बैल भूमी से अंतर ध्यान होने लगे, तब भीम ने बैल के कुबड को पकड लिया। भगवान शिवने पांडव की भक्ति से प्रसन्न हो गए और उन्होने पांडवो को दर्शन देकर पाप मुक्त कर दिया। तभी से भगवान शंकर को बैल की पीठ की आकृती पिंड के रूप मे केदारनाथ धाम मे पूजा जाता है|
3.. पंच केदार
पौराणिक मान्यता है जब भगवान शंकर बैल के रूप मे अंतर ध्यान हुए तो उनके धड से ऊपर का भाग काठमांडू (नेपाल) में प्रकट हुआ। जहा पशुपतिनाथ का मंदिर स्थित है। साथ ही शिव की भुजाएं तुंगनाथ में , मुख रुद्रनाथ में, नाभी मध्यहेश्वर में, और जटा कल्पेश्वर मी प्रकट हुई। इसीलिए इन चारो स्थानों के साथ केदारनाथ धाम को पंच केदार कहा जाता है।
4.. केदारनाथ धाम मे पाच नदियों का है संगम..
केदारनाथ धाम मे पाच नदियों का संगम भी है। यहा मंदाकिनी, मधुगंगा ,क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्ण गौरी नदी है। साथ ही इन नदियों में से कुछ का अवस्थीत में नही रही। लेकिन अलकनंदा की सहाय्यक मंदाकिनी नदी आज भी मौजूद है। इसी के का किनारे केदारेश्वर धाम स्थित है। या सर्दियो मे भारी बर्फ होता है। और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है। समुद्र तल से केदारनाथ धाम 3584 मीटर की उॅंचाई पर स्थित है।
5.. केदारनाथ 6 महीने के लिए बंद होता है।
केदारनाथ मंदिर के खुलने की तिथे और समय अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर निर्भर करता है और महाशिवरात्री को घोषित किया जाता है। केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की पंचांग की गणना के बाद उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारी ओ द्वारा तह की जाती है। नवंबर के महीने से शुरू होने वाली सर्दी ओके दौरान केदारनाथ मे भारि बरस बारी होती है, और सभी रास्ते बंद हो जाते है। मंदिर 6 महीने के लिए बंद रहता है। भगवान शिव की पवित्र मूर्ती को गडवाल (केदार खंड) से उखीमठ मे स्थानांतर कर दिया जाता है और मई के पहले सप्ताह में केदारनाथ मे पुनर्स्थापित किया जाता है। जब तीर्थयात्रियों के लिए मंदिर के दरवाजे खोले जाते है। जो भारत के सभी हिस्सो से एक पवित्र तीर्थयात्रा के लिए एकत्रित होते है। मंदिर कार्तिक के सप्ताह में भाईदूज (ऑक्टोबर-नंबर) के दिन बंद हो जाता है और हर साल अक्षय तृतीया के बाद फिरसे खुलता है। इसके बंद होने के दौरान मंदिर बर्फ मे डूबा रहता है, और उखीमठ मे पूजा की जाती है। केदारनाथ धाम प्रत्येक वर्ष एप्रिल-मे के महिने मे विशाल उत्सव के साथ तीर्थयात्रो के लिए खुलता है। महाशिवरात्री के मौके पर केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की तारीख को ऐलान होता है। हजारो तीर्थयात्री केदारनाथ धाम के पहिले दिन दर्शन करते है।
केदारनाथ मंदिर भक्तो के लिए केवल छह मान तक ही खुलता है। मे अक्षय तृतीया के दिन इसे खोला जाता है। व दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा मे इसे बंद कर दिया जाता है। उसके बाद मंदिर के कपाट छह माह तक बंद रहते है। व भगवान शिव के प्रतीकात्मक स्वरूप को नीचे मुख्य स्थापित कर दिया जाता है। ऐसा इसीलिए कहा जाता है , क्यूंकि उस समय हा भीषण बसवारी होती है। इस कारण वाह के स्थानीय, नागरिक, दुकान वाले ,प्रशासन के अधिकारी अन्य लोक वाह से नीचे रहने चले जाते है। इस दौराण केदारनाथ धाम जाने के सभी मार्ग बंद हो जाते है। यह स्थान पुरी तरफ से सुनसान रहता है।
6.. केदारनाथ मंदिर का निर्माण बडे़-बडे़ पत्थरों, चट्टानो, शिलाखंडो से किया गया है। इन शीलाखंडो को आपस मे जोडणे के लिये इंटरलॉकिंग तकनीक को अपणाया गया है। जिसमे काही भी सिमेंट इत्यादी का प्रयोग नही किया गया है। अब इसमे सबसे बडा रोचक तथ्य और रहस्य है की, केदारनाथ स्वयं समुद्र तर्फे 22 हजार फिट की ऊॅंचाई पर स्थित है। इतनी अधिक उॅंचाई पर इतने विशाल शीला खंडो को पहुचाना व फिर उन्हें एक के ऊपर एक रखकर इंटरलॉकिंग करना किसी मानवो के लिए सक्षम नही दिखता। मंदिर निर्माण का अद्भुत रूप इसे और रोचक बना देता है।
7.. इसका एक और सबसे बडा रोचक तथ्य जो है वह है यहा जलने वाली अखंड ज्योत या दीपक मंदिर के पुजारींयो द्वारा सर्दियो मे मंदिर के कपाट बंद कर ताला जाता है। तब मंदिर के अंदर एक जलता हुआ दीपक छोड दिया जाता है।इसके छह माह के पचात जब मंदिर के कपाट पुन: खोले जाते है। तब वह दीपक उसी तरह जलता हुआ पाया जाता है। इसके साथ ही ऐसा प्रतीत होता है ,की जैसे कल ही किसी ने मंदिर मे पूजा अर्चना व साफसफाई की हो 2013 मे आई भीषण त्रासदि के बाद जब मंदिर के कपाट 6 माह मे खोले गये थे, तब भी अखंड ज्योत जल रही थी।
8.. केदारनाथ मंदिर के पीछे की शीला को नाम पडा भीम शीला।
यह रहस्य बडा रोचक है। केदारनाथ मे 16 जून 2013 को एक भीषण बाढ आई थी। जून मे भारी बारिश के दौरान वहा बादल फटे थे और कहते है, की केदारनाथ मंदिर से पाच किलोमीटर उपर चौराबादी ग्लेशियर के पास एक झील बन गई थी। जिस से उसका सारा पानी तेजी से नीचे आ गया था। बिलकुल जलप्रलय जैसा ही दृश्य था। केदारनाथ मंदिर के मुख्य तीर्थ पुरोहित ने उस वक्त कहा था, कि 16 जून को श्याम करीब 8 बजे के बाद अचानक मंदिर के पीछे उपर वाले पहाडी भाग से पानी का तेज बहाव आता दिखा। इसके बाद तीर्थयात्रियों ने मंदिर मे शरण ली।रातभर लोक एक दुसरे को धाडस बांधते दिखे। मंदिर के चारो और जल प्रलय था।
पाणी मे चट्टान, पत्थर, और मिट्टी के सैलाब ने पुरी केदार घाटी के पत्ते पत्ते को उजाड दिया। पहाडो मे दस्सी बडी़- बडी़ मजबूत चट्टाण भी टूटकर पत्थर बन गई थी। पाणी के सामने कोई नही ठीक पाया था। मंदिर पर भी खतरा आ रहा था।
केदारनाथ के दो साधूयों के माने तो एक चमत्कार ने मंदिर और शिवलिंग को बचाया। 16 जून को जब सैलाब आया तो इन दोनों साधुओने मंदिर के पास के एक खंबे पर चढ़कर रातभर जाग कर अपनी जान बचाई थी। खंबे पर चढे साधुओंने देखा की मंदिर के पीछे से बाढ के साथ अनुमानित सौ की स्पीड से एक विशाल काय डमरूनुमा चट्टान मंदिर की और आ रहा है। लेकिन अचानक वह चट्टान मंदिर के पीछे करीब पचास फूट की दूरी पर रुक गयी ऐसा लगा जैसे उसे किसी ने रोग दिया है। उस चट्टान के कारण बाढ का तेज पानी दो भागो मे बट गया और मंदिर के दोनो और से बहकर निकल गया। उस वक्त मंदिर मे 300 से 500 लोग शरण लिये हुए थे। साधूओके अनुसार उस चट्टान को मंदिर की और आते देख उनकी रूह केदार बाबा का नाम जपणा सुरू कर दिया और अपने मौत का इंतजार करने लगे थे। लेकिन बाबा का चमत्कार की ऊस चट्टान मे मंदिर को और उसके अंदर शरण लिये लोगो को बचा लिया। कहते है कि उस प्रलयकारी बाढ में लगभग दस हजार लोग मारे गये थे। आज घटना को बीते बहुत साल हो चुके है। और व शीला आज भी केदारनाथ के पीछे आदी गुरु शंकराचार्य की समाधी के पास स्तिथ है। आज शीला को "भीम शिला' केहते है। लोग इस शीला की पूजा करने लगे है। कारण यह चट्टान ने बाबा केदारनाथ धाम ज्योतिर्लिंग मंदिर की रक्षा की थी। आज भी शीला का रहस्य बर करार है, की मंदिर की चऔडाई के बराबर यश शीला आई कहा से और कैसे यह अचानक मंदिर के कुछ दूर पर ही रुक गई है चमत्कार कैसे हुआ क्या चमत्कार आधी गुरु शंकराचार्य कथा जिनके समाधी मंदिर के पीछे ही स्थित है या की यह महज एक संयोग था शीला का प्रकट होना और अचानक रूप जाना निश्चित ही बाबा की कृपा ही कही जायेगी कुछ लोग कहते है की सर्वप्रथम यहा मंदिर पांडवणे बनाया बनाया था यही भीम ने भगवान शंकर का पिछा किया था प्रलय के समय सा लगा जैसे भीम ने अपने गदा गाडकर महादेव के मंदिर को बचाया हो संभवता इसीलिए शीला को लोक भीम शीला कहने लगे है। भोलेनाथ की महिमा तो भोलेनाथ ही जाने।
9.. केदारनाथ मंदिर से जुडा एक और रोचक तत्य जिसे जुडा हुआ है यहा के पुजारी सदियोस पहिले जब भारत की भूमी पर आदेश शंकराचार्याने जन्म लिया था बुनके द्वारा केदारनाथ मंदिर का पुन्हा पुनर् निर्माण किया गया था साथी उनकी समाप्ती भी केदारनाथ मंदिर के पीछे स्थित है आदी शंकराचार्य के द्वारा केदारनाथ मंदिर की देखभाल व पूजा अर्चना का कार्य कर्नाटक राज्य के विरार शेव जंगम समुदाय के ब्राह्मण को सोपा गया था तब से यह परंपरा आज तक चली आ रही है इसके साथ ही मंदिर के सभी पूजा अनुष्ठान व कार्य कन्नड भाषा मे ही किये जाते है|
10.. केदारनाथ ने केबल २०१३ की प्राकृतिक आपदा ही नही झेली थी बल्की 400 वर्षों तक यह मंदिर बर्फ मे ढका रहा था। जिहा सही सुना आपने वाडिया इन्स्टिट्यूट हिमालय देहरादून के द्वारा एक शोध किया। जिसमे बताया गया की 13 शताब्दी से लेकर 17 शताब्दी में बर्फ हटने के बाद मंदिर पुन: देखने में आया और फिर से यहाॅं यात्रा सुरू कर दी गई। मंदिर की दीवारों पर बर्फ से ढके होणे के निशान आज तक देखे जा सकते है।
11..केदारनाथ के
पास स्थित श्रीभैरवनाथ मंदिर.. केदारनाथ मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध भैरवनाथ जी का मंदिर स्थित है क्षेत्र का क्षेत्र पालवी कहा जाता है जो इस मंदिर की सुरक्षा करता है सदैव सर्दी ओके अगले दिन से केदारनाथ मंदिर के कपाट भीषण बर्फ बारीक के कारण बंद कर दी दिये जाते है और उसके शहर महा के बाद मै महामे अक्षय तृतीया के दिन खोले जाते है मान्यता है की इन मंदिर की सुरक्षा का भारत श्री भैरवनाथ जी ही संभालते है जो भी भक्तगण केदारनाथ मंदिर के दर्शन करणे तू या आते है उन्हे पहिले श्री भैरवनाथ मंदिर के दर्शन करना अनिवार्य होत आहे अन्यथा केदारनाथ की यात्रा माने जाती है।
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