समुद्र मंथन की कहानी smudra manthan ki kahani
समुद्र मंथन की कहानी smudra manthan ki kahani
आज हम समुद्र मंथन जानते हैं| समुद्र मंथन के समय विष्णु जी ने कच्छ अवतार क्यों लिया था? यह श्री हरी का दुसरा रूप था| एक बार ऋषी दुर्वासाने इद्र को एक माला दी| इंद्र ने वह माला एरावत को पहना दी | एरावत ने वो माला अपने पैरों तले कुचल दी| इस बात का पता चालते ही ऋषी दुर्वासा ने सारे देवताओं को श्राप दिया|सारे देवताओं को शाप दिया कि वह शक्ति हीन हो जाएंगे|
उसी समय दानवो ने देवतायो पर हमाला कर दिया| शक्ति ना होने के कारण देवता दानव का सामना ना कर पाए| व्यथित होकार इंद्र विष्णु जी के पास चले गए| ये पद्मनाथ आप हमारी व्यथा तो जनते ही है| कृपया इसका उपाय बताय| तभी इचन्द्र बोले: देवराज आज असुरों का सामना करने के लिए आपको अमृत की आवश्यकता होगी| और अमृत केवल समुद्र मंथन से ही प्राप्त हो सकता है| प्रभु इतने विशाल समुद्र का मंथन कैसे संभव है| व्यथित ना हो देवराज आप मंदार पर्वत को मथनी और बासुकी को रस्सी बना कर मंथन कीजीय| और असुरों का सामना करने के लिए आपको असुरो की आवश्यकता होगी| इसके लिए आप असुर राज बाली के पास जा कर यह प्रस्ताव रखें|
अमृत का देव और दानव के बीच समान बटवारा होगा| इस बात को भी आप निश्चित कीजिए और अगर वह ना माने तो मेरा आदेश है| उसे कहना| राजपाल के पास गए और यह प्रस्ताव रखा समान बंटवारा राजपाल के पास गए ,और यह प्रस्ताव रखा दानव:बोले समान बटवारा मुझे आप देवताओं पर थोड़ा सा भी विश्वास नहीं है| किंतु यह नारायण विष्णु जी का आदेश है| यह सुनकर वह समुद्र मंथन के लिए मान गए| समुद्र मंथन शुरू हो गया लेकिन मंदार पर्वत दुबने लगा इसलिए भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लिया| और मंदार पर्वत उनकी पीठ पर उठा लिया| समुद्र मंथन के समय हलहाल विष उत्पन्न हुआ| भगवान शिव ने विष को ग्रहण करके अपने कंठ में बरकरार रखा| इस वजह से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है| मंत्र के परिणाम रूप पहले रत्न कामधेनु इत्यादि प्रकट हुआ| और अंत में धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए| ऐसी थी समुद्र मंथन की कहानी |
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